अपठित गद्यांश
अपठित गद्यांश: Overview
इस टॉपिक के अंतर्गत शिक्षार्थी गद्यांशों का अध्ययन कर स्मृति या पुनरावलोकन के आधार पर गद्यांश आधारित प्रश्नों को हल करने की विधि का अध्ययन करते हैं।
Important Questions on अपठित गद्यांश
हिलगार्ड ने किस सिद्धांत का प्रतिपादन किया:

संकेत अधिगम के अंतर्गत सीखने का प्रभावशाली घटक है:

कृष्ण और कालिन्दी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। यह तो नहीं कह सकता कि कदम्ब के बिना कृष्ण अधूरे थे, किन्तु उसका अभाव अवश्य खटकता है। प्रसिद्ध है कृष्ण की बंसी की मधुर आवाज और गोपियों की कृष्णोत्सर्ग प्रेम-कथाएँ। भोर का फूटता प्रभात हो या रात्रि की छिड़ती रागिनी हो ।
जब कभी कृष्ण की मुरली पेड़-पौधों, कुंज लताओं को चीरती, गूंजती हुई गोप-बालाओं के कानों में पहुँचती थी, वे प्रेम में भावविह्वल हो, मदहोश बनी अपने प्रिय के पास चल पड़ती थीं। कहते हैं मुरलीधर का सान्निध्य पाने की गोपियों की अकुलाहट परमात्म-तत्त्व में मिलने की आत्मा की छटपटाहट का संकेत है। इस लौकिकता में भी अलौकिकता अन्तर्निहित है, पर इस अलौकिकता को पहुँचे हुए लोग ही समझ पाते हैं। मुझ जैसों की क्या बिसात? मेरे लिए तो आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध किसी भी प्रकार की क्लिष्टता से बढ़कर है।
मुझे अगर कुछ सूझता है, तो बस कदम्ब, जिसकी पूर्ण आकृति से लेकर फूल, फल, पत्तियों, मकरन्द, यहाँ तक कि उन सूक्ष्म कोशिकाओं के स्वरूप भी अपनी व्याख्या चाहते हैं मुझसे कृष्ण का ग्वाल-बालों के साथ वृन्दावन की झुरमुटों और वनों में गायों का चराना, उनकी मनभावनी बंसी की मधुर आवाज सुन गायों का रम्भाना या फिर कृष्ण की माखन चोरी, गोपियों का उलाहना, यशोदा माता की डॉट-फटकार सारे के सारे कृष्ण कृतित्व मुझे कदम्ब के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते प्रतीत होते हैं।
निम्नलिखित में से गोपियों के प्रेमाभाव विह्वल होने के पीछे कौन उत्प्रेरक का कार्य करता है?

निम्नलिखित में से यमुना नदी के किस पर्यायवाची शब्द का गद्यांश में प्रयोग हुआ है?

कृष्ण और कालिन्दी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। यह तो नहीं कह सकता कि कदम्ब के बिना कृष्ण अधूरे थे, किन्तु उसका अभाव अवश्य खटकता है। प्रसिद्ध है कृष्ण की बंसी की मधुर आवाज और गोपियों की कृष्णोत्सर्ग प्रेम-कथाएँ। भोर का फूटता प्रभात हो या रात्रि की छिड़ती रागिनी हो ।
जब कभी कृष्ण की मुरली पेड़-पौधों, कुंज लताओं को चीरती, गूंजती हुई गोप-बालाओं के कानों में पहुँचती थी, वे प्रेम में भावविह्वल हो, मदहोश बनी अपने प्रिय के पास चल पड़ती थीं। कहते हैं मुरलीधर का सान्निध्य पाने की गोपियों की अकुलाहट परमात्म-तत्त्व में मिलने की आत्मा की छटपटाहट का संकेत है। इस लौकिकता में भी अलौकिकता अन्तर्निहित है, पर इस अलौकिकता को पहुँचे हुए लोग ही समझ पाते हैं। मुझ जैसों की क्या बिसात? मेरे लिए तो आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध किसी भी प्रकार की क्लिष्टता से बढ़कर है।
मुझे अगर कुछ सूझता है, तो बस कदम्ब, जिसकी पूर्ण आकृति से लेकर फूल, फल, पत्तियों, मकरन्द, यहाँ तक कि उन सूक्ष्म कोशिकाओं के स्वरूप भी अपनी व्याख्या चाहते हैं मुझसे कृष्ण का ग्वाल-बालों के साथ वृन्दावन की झुरमुटों और वनों में गायों का चराना, उनकी मनभावनी बंसी की मधुर आवाज सुन गायों का रम्भाना या फिर कृष्ण की माखन चोरी, गोपियों का उलाहना, यशोदा माता की डॉट-फटकार सारे के सारे कृष्ण कृतित्व मुझे कदम्ब के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते प्रतीत होते हैं।
प्रस्तुत गद्यांश की केंद्रीय विषय-वस्तु के रूप में कौन उपस्थित है?

कृष्ण और कालिन्दी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। यह तो नहीं कह सकता कि कदम्ब के बिना कृष्ण अधूरे थे, किन्तु उसका अभाव अवश्य खटकता है। प्रसिद्ध है कृष्ण की बंसी की मधुर आवाज और गोपियों की कृष्णोत्सर्ग प्रेम-कथाएँ। भोर का फूटता प्रभात हो या रात्रि की छिड़ती रागिनी हो ।
जब कभी कृष्ण की मुरली पेड़-पौधों, कुंज लताओं को चीरती, गूंजती हुई गोप-बालाओं के कानों में पहुँचती थी, वे प्रेम में भावविह्वल हो, मदहोश बनी अपने प्रिय के पास चल पड़ती थीं। कहते हैं मुरलीधर का सान्निध्य पाने की गोपियों की अकुलाहट परमात्म-तत्त्व में मिलने की आत्मा की छटपटाहट का संकेत है। इस लौकिकता में भी अलौकिकता अन्तर्निहित है, पर इस अलौकिकता को पहुँचे हुए लोग ही समझ पाते हैं। मुझ जैसों की क्या बिसात? मेरे लिए तो आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध किसी भी प्रकार की क्लिष्टता से बढ़कर है।
मुझे अगर कुछ सूझता है, तो बस कदम्ब, जिसकी पूर्ण आकृति से लेकर फूल, फल, पत्तियों, मकरन्द, यहाँ तक कि उन सूक्ष्म कोशिकाओं के स्वरूप भी अपनी व्याख्या चाहते हैं मुझसे कृष्ण का ग्वाल-बालों के साथ वृन्दावन की झुरमुटों और वनों में गायों का चराना, उनकी मनभावनी बंसी की मधुर आवाज सुन गायों का रम्भाना या फिर कृष्ण की माखन चोरी, गोपियों का उलाहना, यशोदा माता की डॉट-फटकार सारे के सारे कृष्ण कृतित्व मुझे कदम्ब के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते प्रतीत होते हैं।
निम्नलिखित में से किस शब्द में दो प्रत्ययों का प्रयोग हुआ है?

कृष्ण और कालिन्दी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। यह तो नहीं कह सकता कि कदम्ब के बिना कृष्ण अधूरे थे, किन्तु उसका अभाव अवश्य खटकता है। प्रसिद्ध है कृष्ण की बंसी की मधुर आवाज और गोपियों की कृष्णोत्सर्ग प्रेम-कथाएँ। भोर का फूटता प्रभात हो या रात्रि की छिड़ती रागिनी हो ।
जब कभी कृष्ण की मुरली पेड़-पौधों, कुंज लताओं को चीरती, गूंजती हुई गोप-बालाओं के कानों में पहुँचती थी, वे प्रेम में भावविह्वल हो, मदहोश बनी अपने प्रिय के पास चल पड़ती थीं। कहते हैं मुरलीधर का सान्निध्य पाने की गोपियों की अकुलाहट परमात्म-तत्त्व में मिलने की आत्मा की छटपटाहट का संकेत है। इस लौकिकता में भी अलौकिकता अन्तर्निहित है, पर इस अलौकिकता को पहुँचे हुए लोग ही समझ पाते हैं। मुझ जैसों की क्या बिसात? मेरे लिए तो आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध किसी भी प्रकार की क्लिष्टता से बढ़कर है।
मुझे अगर कुछ सूझता है, तो बस कदम्ब, जिसकी पूर्ण आकृति से लेकर फूल, फल, पत्तियों, मकरन्द, यहाँ तक कि उन सूक्ष्म कोशिकाओं के स्वरूप भी अपनी व्याख्या चाहते हैं मुझसे कृष्ण का ग्वाल-बालों के साथ वृन्दावन की झुरमुटों और वनों में गायों का चराना, उनकी मनभावनी बंसी की मधुर आवाज सुन गायों का रम्भाना या फिर कृष्ण की माखन चोरी, गोपियों का उलाहना, यशोदा माता की डॉट-फटकार सारे के सारे कृष्ण कृतित्व मुझे कदम्ब के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते प्रतीत होते हैं।
'______पर इस अलौकिकता को पहुंचे हुए लोग ही समझ पाते हैं। मुझे जैसों की क्या बिसात?' रेखांकित शब्द को निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द प्रतिस्थापित कर सकता है?

कृष्ण और कालिन्दी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। यह तो नहीं कह सकता कि कदम्ब के बिना कृष्ण अधूरे थे, किन्तु उसका अभाव अवश्य खटकता है। प्रसिद्ध है कृष्ण की बंसी की मधुर आवाज और गोपियों की कृष्णोत्सर्ग प्रेम-कथाएँ। भोर का फूटता प्रभात हो या रात्रि की छिड़ती रागिनी हो ।
जब कभी कृष्ण की मुरली पेड़-पौधों, कुंज लताओं को चीरती, गूंजती हुई गोप-बालाओं के कानों में पहुँचती थी, वे प्रेम में भावविह्वल हो, मदहोश बनी अपने प्रिय के पास चल पड़ती थीं। कहते हैं मुरलीधर का सान्निध्य पाने की गोपियों की अकुलाहट परमात्म-तत्त्व में मिलने की आत्मा की छटपटाहट का संकेत है। इस लौकिकता में भी अलौकिकता अन्तर्निहित है, पर इस अलौकिकता को पहुँचे हुए लोग ही समझ पाते हैं। मुझ जैसों की क्या बिसात? मेरे लिए तो आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध किसी भी प्रकार की क्लिष्टता से बढ़कर है।
मुझे अगर कुछ सूझता है, तो बस कदम्ब, जिसकी पूर्ण आकृति से लेकर फूल, फल, पत्तियों, मकरन्द, यहाँ तक कि उन सूक्ष्म कोशिकाओं के स्वरूप भी अपनी व्याख्या चाहते हैं मुझसे कृष्ण का ग्वाल-बालों के साथ वृन्दावन की झुरमुटों और वनों में गायों का चराना, उनकी मनभावनी बंसी की मधुर आवाज सुन गायों का रम्भाना या फिर कृष्ण की माखन चोरी, गोपियों का उलाहना, यशोदा माता की डॉट-फटकार सारे के सारे कृष्ण कृतित्व मुझे कदम्ब के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते प्रतीत होते हैं।
प्रस्तुत गद्यांश में छटपटाहट शब्द का क्या अर्थ है?

कृष्ण और कालिन्दी दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। यह तो नहीं कह सकता कि कदम्ब के बिना कृष्ण अधूरे थे, किन्तु उसका अभाव अवश्य खटकता है। प्रसिद्ध है कृष्ण की बंसी की मधुर आवाज और गोपियों की कृष्णोत्सर्ग प्रेम-कथाएँ। भोर का फूटता प्रभात हो या रात्रि की छिड़ती रागिनी हो ।
जब कभी कृष्ण की मुरली पेड़-पौधों, कुंज लताओं को चीरती, गूंजती हुई गोप-बालाओं के कानों में पहुँचती थी, वे प्रेम में भावविह्वल हो, मदहोश बनी अपने प्रिय के पास चल पड़ती थीं। कहते हैं मुरलीधर का सान्निध्य पाने की गोपियों की अकुलाहट परमात्म-तत्त्व में मिलने की आत्मा की छटपटाहट का संकेत है। इस लौकिकता में भी अलौकिकता अन्तर्निहित है, पर इस अलौकिकता को पहुँचे हुए लोग ही समझ पाते हैं। मुझ जैसों की क्या बिसात? मेरे लिए तो आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध किसी भी प्रकार की क्लिष्टता से बढ़कर है।
मुझे अगर कुछ सूझता है, तो बस कदम्ब, जिसकी पूर्ण आकृति से लेकर फूल, फल, पत्तियों, मकरन्द, यहाँ तक कि उन सूक्ष्म कोशिकाओं के स्वरूप भी अपनी व्याख्या चाहते हैं मुझसे कृष्ण का ग्वाल-बालों के साथ वृन्दावन की झुरमुटों और वनों में गायों का चराना, उनकी मनभावनी बंसी की मधुर आवाज सुन गायों का रम्भाना या फिर कृष्ण की माखन चोरी, गोपियों का उलाहना, यशोदा माता की डॉट-फटकार सारे के सारे कृष्ण कृतित्व मुझे कदम्ब के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते प्रतीत होते हैं।
गद्यांश में किस-किस पर कृष्ण की मनभावनी बांसुरी का प्रभाव दर्शाया गया है?

गद्यांश के अनुसार पहले के समाज के उपभोक्ता पर कौन हावी दृष्टिगोचर होता है?

गद्यांश के अनुसार जो मानवीय गुणों का ह्वास एवं आदर्शों की असुरक्षा उत्पन्न हुई है, उसकी जड़ में कौन-से कारक निहित हैं?

नव उपभोक्ता संस्कृति ने पूरे विश्व को खोखली यथार्थवादी सोच दी है। सांस्कृतिक उपनिवेशवाद ने तो हद ही कर दी। यह सांस्कृतिक उपनिवेशवाद बड़े राष्ट्रों और छोटे राष्ट्रों, धनी राष्ट्रों और गरीब राष्ट्रों एवं विकसित राष्ट्रों और विकासशील राष्ट्रों के बीच में ही रखा तरबूज नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्र और समाज के भीतर पनपता नया स्वकेन्द्रित यथार्थ भी है। मनुष्य की अँजुरी में सहेजे भाव, मुट्ठी भर राख हो गए। कोई आदर्श सुरक्षित नहीं बचा स्वार्थ के बेखौफ बौखलायेपन ने सम्बन्धों, मूल्यों और संवेदनाओं की जड़ों में अंगारे दाब दिए। पहले के समाज में स्वार्थ न रहा हो, उपभोक्ता न रहा हो, ऐसी बात नहीं है, पर वे लोग मनुष्य पहले थे, उपभोक्ता बाद में खाते समय कोई आ जाए और घर में यदि और भोजन न हो, तो अपनी थाली में से ही थोड़ा-सा उस भूखे को देने की बात कही गई है। पुराने समय में लोग ऐसा करते भी रहे हैं। इसे नैतिकता भले ही कहे, पहले तो यह मनुष्यता ही है। मनुष्य के सौन्दर्य-बोध और संवेदना का परिष्कार और विस्तार तो होना ही चाहिए। अपनी जरूरतों के साथ दूसरों की जरूरतों का ध्यान और उनकी पूर्ति में समान और समभाव भी व्यक्ति को एक तरह से सांसारिक संन्यासी ही बनाता है। संकीर्णता, तुच्छता, ढोंग और डायनपने से बाहर निकलकर मानवता की उच्चतर जमीन पाना मुक्ति की रातरानी के देश में पहुँच जाना है। जहाँ बुद्ध, कबीर और गाँधी पहुँच सके थे।
गद्यांश के अनुसार किन नैसर्गिक मानवीय गुणों को व्यापकता प्रदान करने तथा उनके और शुद्धि रूप ग्रहण करने की बात कही गई है?

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो । प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या-समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।
देश-प्रेम का अंकुर विद्यमान है-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो । प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या-समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।
वही देश महान है जहाँ के लोग-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो । प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या-समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।
संध्या समय पक्षी अपने घोंसले में वापिस चले जाते हैं, क्योंकि-

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है संध्या-समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।
सच्चा देश-प्रेमी:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्न के उत्तर दीजिए :
वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव है ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है संध्या-समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देश-प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।
देश -प्रेम का अभिप्राय है:

हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता जनंसख्या वृद्धि को रोकना है। इस क्षेत्र में हमारे सभी प्रयत्न निष्फल रहे हैं। ऐसा क्यों है? यह इसलिए भी हो सकता है कि समस्या को देखने का हर एक का एक अलग नजरिया है। जनसंख्याशास्त्रियों के लिए यह आँकड़ों का अम्बार है। अफसरशाही के लिए यह टार्गेट तय करने की कवायद है। राजनीतिज्ञ इसे वोट बैंक की दृष्टि से देखता है। ये सब अपने-अपने ढंग से समस्या को सुलझाने में लगे हैं। अतः अलग-अलग किसी के हाथ सफलता नहीं लगी। पर यह स्पष्ट है कि परिवार के आकार पर आर्थिक विकास का मतलब पाश्चात्य मतानुसार भौतिकवाद नहीं, जहाँ बच्चों को बोझ माना जाता है। हमारे लिए तो यह सम्मानपूर्वक जीने के स्तर से सम्बन्धित है। यह मौजूदा सम्पत्ति के समतामूलक विवरण पर ही निर्भर नहीं है वरन् ऐसी शैली अपनाने से सम्बन्धित है। जिसमें एक अरब इक्कीस करोड़ लोगों की ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल हो सके इसी प्रकार, स्त्री शिक्षा भी है।यह समाज में एक नये प्रकार का चिन्तन पैदा करेगी जिससे सामाजिक और आर्थिक विकास के नये आयाम खुलेंगे। अतः जनसंख्या की समस्या सामाजिक है। इसे ग्राम-ग्राम, व्यक्ति-व्यक्ति तक पहुँचाना होगा। जब तक यह जन आन्दोलन नहीं बन जाता, तब तक सफलता संदिग्ध है।
जनसंख्या समस्या के प्रति हमारे दृष्टिकोण में किस परिवर्तन की आवश्यकता है?

हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता जनंसख्या वृद्धि को रोकना है। इस क्षेत्र में हमारे सभी प्रयत्न निष्फल रहे हैं। ऐसा क्यों है? यह इसलिए भी हो सकता है कि समस्या को देखने का हर एक का एक अलग नजरिया है। जनसंख्याशास्त्रियों के लिए यह आँकड़ों का अम्बार है। अफसरशाही के लिए यह टार्गेट तय करने की कवायद है। राजनीतिज्ञ इसे वोट बैंक की दृष्टि से देखता है। ये सब अपने-अपने ढंग से समस्या को सुलझाने में लगे हैं। अतः अलग-अलग किसी के हाथ सफलता नहीं लगी। पर यह स्पष्ट है कि परिवार के आकार पर आर्थिक विकास का मतलब पाश्चात्य मतानुसार भौतिकवाद नहीं, जहाँ बच्चों को बोझ माना जाता है। हमारे लिए तो यह सम्मानपूर्वक जीने के स्तर से सम्बन्धित है। यह मौजूदा सम्पत्ति के समतामूलक विवरण पर ही निर्भर नहीं है वरन् ऐसी शैली अपनाने से सम्बन्धित है। जिसमें एक अरब इक्कीस करोड़ लोगों की ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल हो सके इसी प्रकार, स्त्री शिक्षा भी है।यह समाज में एक नये प्रकार का चिन्तन पैदा करेगी जिससे सामाजिक और आर्थिक विकास के नये आयाम खुलेंगे। अतः जनसंख्या की समस्या सामाजिक है। इसे ग्राम-ग्राम, व्यक्ति-व्यक्ति तक पहुँचाना होगा। जब तक यह जन आन्दोलन नहीं बन जाता, तब तक सफलता संदिग्ध है।
स्त्री शिक्षा का सर्वाधिक लाभ कहाँ उठाया जा सकता है?

हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता जनंसख्या वृद्धि को रोकना है। इस क्षेत्र में हमारे सभी प्रयत्न निष्फल रहे हैं। ऐसा क्यों है? यह इसलिए भी हो सकता है कि समस्या को देखने का हर एक का एक अलग नजरिया है। जनसंख्याशास्त्रियों के लिए यह आँकड़ों का अम्बार है। अफसरशाही के लिए यह टार्गेट तय करने की कवायद है। राजनीतिज्ञ इसे वोट बैंक की दृष्टि से देखता है। ये सब अपने-अपने ढंग से समस्या को सुलझाने में लगे हैं। अतः अलग-अलग किसी के हाथ सफलता नहीं लगी। पर यह स्पष्ट है कि परिवार के आकार पर आर्थिक विकास का मतलब पाश्चात्य मतानुसार भौतिकवाद नहीं, जहाँ बच्चों को बोझ माना जाता है। हमारे लिए तो यह सम्मानपूर्वक जीने के स्तर से सम्बन्धित है। यह मौजूदा सम्पत्ति के समतामूलक विवरण पर ही निर्भर नहीं है वरन् ऐसी शैली अपनाने से सम्बन्धित है। जिसमें एक अरब इक्कीस करोड़ लोगों की ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल हो सके इसी प्रकार, स्त्री शिक्षा भी है।यह समाज में एक नये प्रकार का चिन्तन पैदा करेगी जिससे सामाजिक और आर्थिक विकास के नये आयाम खुलेंगे। अतः जनसंख्या की समस्या सामाजिक है। इसे ग्राम-ग्राम, व्यक्ति-व्यक्ति तक पहुँचाना होगा। जब तक यह जन आन्दोलन नहीं बन जाता, तब तक सफलता संदिग्ध है।
परिवार के छोटा या बड़ा होने पर सबसे अधिक प्रभाव किसका पड़ता है?
